भारत में पाँच प्रमुख प्रकार की मृदा पाई जाती है - 

जलोढ़ मृदा 
काली मृदा 
लाल मृदा 
लैटेराइट
मरुमृदा 

जलोढ़ मृदा

निर्माण : जल के प्रवाह द्वारा लाई गई मृदा को जलोढ़क कहा जाता है। 

यह मृदा विभिन्न पदार्थों से मिलकर बनी होती है। ये पदार्थ महीन कण से लेकर बड़े कण भी हो सकते हैं।
महीन कण : गाद और मृत्तिका
बड़े कण : बालू और बजरी मिट्टी  

यह मिट्टी भारत के लगभग 40% क्षेत्र में पाई जाती है। यह अधिकतर उत्तरी मैदानों और प्रयद्वीपीय भारत के तटीय क्षेत्रों में पाई जाती है। 
प्राचीनतम जलोढ़ : भांभर और तराई क्षेत्र
नवीनतम जलोढ़ : खादर, डेल्टाई क्षेत्र और मध्य घाटी

तत्व : 
पर्याप्त/अधिक मात्रा में - चूना, पोटाश
कम मात्रा में - नाइट्रोजन, फॉस्फोरस

फास्फॉरस और नाइट्रोजन की कमी के कारण इस मिट्टी में यूरिया खाद डाली जाती है। 
खादर में ये तत्व भांभर की अपेक्षा अधिक होते हैं, अतः खादर में मिट्टी, भांभर की अपेक्षाकृत अत्यधिक उपजाऊ होती है।

इस मिट्टी में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें : दालें, कपास, तिलहन, गन्ना और जूट।

मृदा की विशेषता : यह मृदा ढीली होती है तथा इसके कण आपस में मिलकर किसी ठोस शैल का निर्माण नहीं करते। यह मृदा उपजाऊ होती है था कंकड़ विहीन होती है।

काली मृदा/लावा मिट्टी
  
भारत में जलोढ़ मृदा के बाद सर्वाधिक मात्रा में पाई जाने वाली मृदा काली मिट्टी है। भारत में यह मिट्टी महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, दक्कन पठार, मालवा पठार में पाई जाती है। सर्वाधिक मात्रा में यह महाराष्ट्र में पाई जाती है।

निर्माण : काली मिट्टी का निर्माण बहिर्भेदी (ज्वालामुखीय) आग्नेय चट्टान, बेसाल्ट के टूटने से होता है।

काली मृदा के नाम
उत्तर भारत : केवाल
दक्षिण भारत : रेगुड़ और शाली(केरल)  

तत्व : 
पर्याप्त/अधिक मात्रा में - लोहा, चूना, मैग्नीशियम, एलूमिना, पोटाश
कम मात्रा में - नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस

इस मिट्टी का रंग काला होता है – जीवांश के कारण लोहे की मात्रा अधिक होने के कारण। 

इस मिट्टी में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें : कपास, धान, मसूर, चना इत्यादि।  

विशेषता : यह मृदा जल नहीं सोखती अतः धान की खेती के लिए सर्वोत्तम मिट्टी है।
इस मिट्टी की विशेषता है की यह मिट्टी भीगने पर चिपचिपी और सूखने पर कड़ी हो जाती है।

लाल मिट्टी/ मटासी मिट्टी

भारत में यह बुन्देलखण्ड क्षेत्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, पश्चिमी बंगाल, मेघालय, नागालैण्ड, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु, महाराष्ट्र में पाई जाती है। यह मिट्टी सर्वाधिक मात्रा में तमिलनाडु में पाई जाती है।

निर्माण : इसका निर्माण ग्रेनाइट के टूटने से होता है जो एक आग्नेय चट्टान है।   

तत्व : 
पर्याप्त/अधिक मात्रा में - लोहा, चूना, ऐल्युमिनियम
कम मात्रा में - नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस

आयरन ऑक्साइड के कारण यह मिट्टी लाल रंग की दिखाई देती है।

इस मिट्टी में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें : बाजरा, धान, ज्वार, मूँगफली, अरहर, मकई। 

मृदा की विशेषता : यह रंध्रयुक्त मृदा है। 

लैटेराइट

यह मिट्टी पहाड़ी और पथरी क्षेत्रों में पाई जाती है। भारत में असम, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, मध्य प्रदेश, बिहार आदि राज्यों में पाई जाती है। यह मिट्टी सर्वाधिक मात्रा में केरल में पाई जाती है।

निर्माण : इसका निर्माण लेटेराइट चट्टानों के टूटने से होता है।

तत्व :
पर्याप्त/अधिक मात्रा में - लौह ऑक्साइड एवं अल्यूमिनियम ऑक्साइड, चूना
कम मात्रा में/कमी – नाइट्रोजन,फॉस्फोरस, पोटाश

आयरन ऑक्साइड के कारण यह मिट्टी भी लाल रंग की दिखाई देती है।

इस मिट्टी में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें : चाय, कॉफी, काजू।   

शुष्क मृदा/ मरुमृदा

यह शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है।  

तत्व : 
पर्याप्त/अधिक मात्रा में - घुलनशील लवण एवं फॉस्फोरस
कम मात्रा में/कमी – नाइट्रोजन, कार्बन

इस मिट्टी में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें : तिलहन, ज्वार, बाजरा, रागी। 

यह मिट्टी सबसे कम उपजाऊ है।